वैदिक काल के बारे मै खास जानकारी #truthoflife

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 वैदिक काल

➤ऋग्वेद का रचनाकाल 1500-1000 ई. पू. रहा है। उत्तर ➤वैदिक रचनाकाल 1000-600 ई. पू. तक रहा है।

'आर्य' शब्द का अर्थ- 'उत्तम' अथवा 'श्रेष्ठ' होता है। क्लासिकीय संस्कृत में 'आर्य' शब्द का अर्थ 'एक उत्तम व्यक्ति' के लिए हुआ है।

आर्यों द्वारा विकसित सभ्यता ग्रामीण थी तथा भाषा संस्कृत थी ।

आर्य सर्वप्रथम सप्तसैन्धव प्रदेश में आकर बसे थे। इस प्रदेश में बहने वाली सात नदियों का जिक्र हमें ऋग्वेद में मिलता है। ये हैं-सिन्धु, सरस्वती, शत्रुदि (सतलज), विपासा (व्यास), पुरुष्णी (रावी), वितस्ता (झेलम), आस्किनी (चिनाव) आदि ।

इस प्रकार आर्य सर्वप्रथम पंजाब और अफगानिस्तान के क्षेत्र में आकर बसे।

➤ऋग्वेद में अफगानिस्तान की कुछ नदियाँ-कुभा (काबुल), सुवास्तु (स्वात), क्रुमु (कुर्रम) और गोमती (गोमल) का वर्णन है।

➤ऋग्वेद में गंगा नदी का एक बार तथा यमुना नदी का तीन बार नाम मिलता है।

➤आर्यों ने अगले पड़ाव के रूप में कुरुक्षेत्र के निकट के प्रदेशों पर कब्जा कर उस क्षेत्र का नाम ब्रह्मावर्त रखा।

आर्यों ने आगे बढ़कर गंगा-यमुना दोआब क्षेत्र एवं उसके नजदीक के क्षेत्रों पर कब्जा कर उस क्षेत्र का नाम ब्रह्मर्षि देश रखा।

अन्त में बंगाल एवं बिहार के दक्षिणी एवं पूर्वी भागों पर अधिकार कर समूचे उत्तर भारत पर अधिकार कर लिया। कालान्तर में इस क्षेत्र का नाम 'आर्यावर्त' रखा गया ।


वैदिककालीन साहित्यिक स्रोत

वेद-सूक्तों, प्रार्थनाओं, स्तुतियों, मन्त्र-तन्त्रों तथा यज्ञ सम्बन्धी सूत्रों का संग्रह है।

वेदों के संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद एवं सामवेद को वेदत्रयी कहा जाता है।

वेदों के नाम 'श्रुति' भी है, क्योंकि इन्हें संकलन किये जाने से पूर्व गुरु-शिष्य परम्परा में ये सुनाये/कण्ठस्थ कराये जाते थे।

वेदों की संख्या चार है- (1) ऋग्वेद, (2) यजुर्वेद, (3) सामवेद, (4) अथर्ववेद ।

(1) ऋग्वेद—   (i) इसमें विभिन्न देवताओं की स्तुति में गाये गये मन्त्रों का संग्रह है। इसके पुरोहित को होरा या होता कहा जाता है।

(ii) इसमें कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्त या ऋचाएँ तथा 10462 मन्त्र अथवा ऋचा या श्लोक हैं।

 (iii) ऋग्वेद के 10 मण्डलों में दूसरे से सातवें मण्डल की ऋचाएँ सबसे प्राचीन मानी जाती हैं। यह एक ऋषि एवं उनके परिवार के द्वारा संकलित किये गये, जिस कारण इन्हें वंश मंडल कहते हैं जबकि 1, 8, 9 तथा 10वें मण्डल बाद में जोड़े गये।'

 (iv) ऋग्वेद के तृतीय मण्डल में गायत्री मन्त्र मिलता है। यह ऋग्वेद में सूर्य देवता सविता को समर्पित

है

(v) ऋग्वेद के दशवें मण्डल (पुरुष सूक्त) में चातुर्वण्य समाज (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र) की कल्पना मिलती है

(vi) यह विश्व का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है ।

(vii) ऋग्वेद के 9 मण्डल में सोमयज्ञ का वर्णन सर्वाधिक बार आया है



(2) यजुर्वेद (i) इसमें यज्ञ सम्बन्धी सूक्तों का संग्रह है। यह गद्य

तथा पद्य दोनों में लिखा गया है। इसमें बलिदान विधि का वर्णन मिलता है।

(ii) इसके पुरोहित को अध्वर्यु कहा जाता है। 

(iii) यजुर्वेद के दो प्रधान रूप हैं— (1) कृष्ण यजुर्वेद(इसकी शाखाएँ- काठक, कपिष्ठल, मैत्रेयी तथा तैत्तिरीय संहिता), (2) शुक्ल यजुर्वेद (इसकी शाखाएँ-कण्व तथा मध्यान्दिन) ।

(iv) इसे आयुर्वेद का उद्गम माना जाता है। 



(3) सामवेद (i) इसमें देवताओं की स्तुति में गाये जाने वाले मन्त्रों का संग्रह है। इसके पुराहित को 'उद्गाता' कहा जाता है।

(ii) सामवेद को 'भारतीय संगीत का जनक' माना जाता है।

(iii) सामवेद की तीन शाखाएँ हैं— (1) कौभुम, (2)

राणायनीय, (3) जैमिनीय ।

(iv) सामवेद के प्रमुख उपनिषद् छान्दोग्य तथा जैमिनीय हैं।

(4) अथर्ववेद (i) इसमें तत्कालीन लोक परम्पराओं का संकलन, भूत-प्रेत, तन्त्र-मन्त्र, अन्धविश्वास तथा विभिन्न प्रकार की औषधियों का उल्लेख मिलता है। 

(ii) अथर्ववेद को ब्रह्मवेद भी कहा जाता है।

 (iii) अथर्ववेद में राजा परीक्षित का उल्लेख है।

 (iv) अथर्ववेद के पुरोहित को 'ब्रह्म' कहा जाता है।

 (v) अथर्ववेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है।

(vi) अथर्ववेद में 'जीवन का विज्ञान' का उल्लेख सर्वप्रथम मिलता है।


ब्राह्मण ग्रन्थ

यज्ञों एवं कर्मकाण्डों के विधान एवं इनकी क्रियाओं को भली-भाँति समझने के लिए ही नवीन ब्राह्मण ग्रन्थ की रचना हुई । ब्राह्मण ग्रन्थों में राजा परीक्षित के बाद तथा बिम्बिसार के पूर्व की घटनाओं का वर्णन मिलता है।

आरण्यक

(i) आरण्यकों में दार्शनिक एवं रहस्यात्मक विषयों का वर्णन होता है। इन ग्रन्थों को आरण्यक इसलिए कहा गया, क्योंकि इन ग्रन्थों को अरण्य अर्थात् वन में पढ़ा जाता था ।

(ii) इनकी कुल संख्या सात है— (1) ऐतरेय आरण्यक, (2) शाखायन आरण्यक, (3) तैत्तरीय आरण्यक, (4) मैत्रायणी आरण्यक, (5) माध्यन्दिन बृहदारण्यक, (6) तल्वकार, (7) छान्दोग्य ।

उपनिषद्

(i) इसका शाब्दिक अर्थ है 'समीप बैठना' अर्थात् ब्रह्म विद्या को प्राप्त करने के लिए गुरु के समीप बैठना । इस प्रकार उपनिषद् एक ऐसा रहस्य ज्ञान है, जिसे हम गुरु के सहयोग से ही समझ सकते हैं ।

(ii) उपनिषदों में आत्मा-परमात्मा एवं संसार के सन्दर्भ में प्रचलित दार्शनिक विचारों का संग्रह मिलता है।

(iii) उपनिषदों की कुल संख्या 108 मानी गयी है, किन्तु प्रमाणिक उपनिषद् 12 हैं। प्रमुख उपनिषद हैं-ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, कौषीतकी, वृहदारण्यक, श्वेताश्वर आदि। 

मोक्ष शब्द का सबसे पहले उल्लेख श्वेताम्बर उपनिषद में हुआ था।

उपनिषद काल में राजा अश्वपति केकय के शासक थे। भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य 'सत्यमेव जयते' मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है।

चारों आश्रमों की प्रथम जानकारी जाबालोपनिषद् से मिलती है। ये 4 आश्रम हैं— ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास । 

वेदांग

(i) वेदों के अर्थ को अच्छी तरह समझने में वेदांग काफी सहायक होते हैं। वेदांग शब्द से अभिप्राय है, जिसके द्वारा वेदों के स्वरूप को समझने में सहायता मिले।

(ii) वेदांग की कुल संख्या 6 है, जो इस प्रकार हैं— (1) शिक्षा, (2) छन्द, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5) ज्योतिष, (6) कल्प।


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