⧫⧫ वैदिक काल
⧫ पितृसत्तात्मक परिवार आर्यों के कबीलाई समाज की बुनियादी इकाई थी।
⧫ऋग्वेद में आर्यों के पाँच कबीले होने के कारण उन्हें पंचजन्य कहा गया है। ये थे-अनु, द्रुह्यु, पुरु, तुर्वस तथा यदु।
⧫भरत, क्रिवि एवं त्रित्स आर्य शासक वंश के थे। भरत कुल के नाम से ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। इसके पुरोहित वशिष्ठ थे।
⧫भरतवंश के राजा सुदास तथा अन्य दस जो पुरु, यदु, तुर्वशु, अनु, दुह्यु, अकिन, पक्थ, भलानस, विषाणी और शिव के मध्य दशराज हयुद्ध पुरुष्णी नदी (रावी नदी) के किनारे लड़ा गया, जिसमें सुदास को विजय मिली। इसका उल्लेख ऋग्वेद के 7वें मण्डल में मिलता है।
⧫ पितृसत्तात्मक परिवार आर्यों के कबीलाई समाज की बुनियादी इकाई थी।
⧫ऋग्वेद में आर्यों के पाँच कबीले होने के कारण उन्हें पंचजन्य कहा गया है। ये थे-अनु, द्रुह्यु, पुरु, तुर्वस तथा यदु।
⧫भरत, क्रिवि एवं त्रित्स आर्य शासक वंश के थे। भरत कुल के नाम से ही इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। इसके पुरोहित वशिष्ठ थे।
⧫भरतवंश के राजा सुदास तथा अन्य दस जो पुरु, यदु, तुर्वशु, अनु, दुह्यु, अकिन, पक्थ, भलानस, विषाणी और शिव के मध्य दशराज हयुद्ध पुरुष्णी नदी (रावी नदी) के किनारे लड़ा गया, जिसमें सुदास को विजय मिली। इसका उल्लेख ऋग्वेद के 7वें मण्डल में मिलता है।⧫'आर्य' शब्द तथा 'स्तूप' शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
⧫ ऋग्वैदिक काल में समाज कबीले के रूप में संगठित था, कबीले को जन कहा जाता था। कबीले या जन का प्रशासन कबीले का मुखिया करता था, जिसे राजन कहा जाता था।
⧫ऋग्वैदिक काल में राजा का पद आनुवंशिक हो चुका था। फिर भी प्रधान या राजा के हाथ में असीमित अधिकार नहीं था ।
⧫ऋग्वैदिक काल में महिलाएँ भी सभा एवं विदथ में भाग लेती थीं।
⧫ ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति सम्माननीय थी। वे अपने पति के साथ यज्ञ कार्यों में सम्मिलित होतीं एवं दान दिया करती थीं । पर्दा प्रथा का प्रचलन नहीं था।
⧫ स्त्रियाँ भी शिक्षा ग्रहण करती थीं, ऋग्वेद में लोपामुद्रा, घोषा, सिकता, अपाला एवं विश्वारा जैसी विदुषी स्त्रियों का जिक्र मिलता है।
⧫जीवनभर अविवाहित रहने वाली लड़कियों को 'अमाजू' कहा जाता था।
⧫ ऋग्वैदिक काल में व्यापार में क्रय-विक्रय हेतु विनिमय प्रणाली का शुभारम्भ हो चुका था। इस प्रणाली में वस्तु विनिमय के साथ-साथ गाय, घोड़े एवं सुवर्ण से भी क्रय-विक्रय किया जाता था।
⧫ ऋग्वेद में 'इन्द्र' का वर्णन सर्वाधिक प्रतापी देवता के रूप में किया गया है। इन्हें आर्यों का युद्ध नेता एवं वर्षा का देवता माना जाता था।
⧫भारतीय इतिहास के उत्तर वैदिक काल (1000-600 ई. पू.) में सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद तथा ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों एवं उपनिषदों की रचना हुई ।
⧫उत्तर वैदिक काल में पांचाल सर्वाधिक विकसित राज्य था।
⧫सर्वप्रथम ऐतरेय ब्राह्मण में ही राजा की उत्पत्ति का सिद्धान्त मिलता है।
⧫ प्रदेश का संकेत करने वाला शब्द 'राष्ट्र' सर्वप्रथम उत्तरवैदिक काल में ही प्रयोग किया गया है।
⧫ अथर्ववेद में सभा एवं समिति को प्रजापति की दो पुत्रियाँ कहा गया है। ऐतरेय ब्राह्मण में सर्वप्रथम चारों वर्णों के कर्मों के विषय में विवरण मिलता है।
⧫सर्वप्रथम जाबलोपनिषद् में चारों आश्रमों का विवरण मिलता है।
⧫ सर्वप्रथम शतपथ ब्राह्मण में कृषि की समस्त प्रक्रियाओं कर्षण (जुताई), वपन (बुआई), लुनन (कटाई) एवं मर्षन (मड़ाई) का उल्लेख मिलता है।
⧫काठक संहिता में 24 बैलों द्वारा हल खींचे जाने का उल्लेख मिलता है।
⧫ ब्रीह (धान), यव (जौ), माण (उड़द), मुद्ग (मूँग), गोधूम (गेंहूँ), मसूर आदि अनाजों का वर्णन यजुर्वेद में मिलता है।
⧫अथर्ववेद में ही सिंचाई के साधन के रूप में वर्णा कूप एवं नहर का उल्लेख मिलता है।
⧫यजुर्वेद में हल को 'सीर' कहा गया है।
⧫उत्तर वैदिक काल में लोहे को श्याम अयस एवं कृष्ण अयस कहा गया है।
⧫उत्तर वैदिक काल में ऋग्वैदिक काल के प्रमुख देवता इन्द्र, अग्नि एवं वरुण महत्वहीन हो गये। इस काल में सर्वश्रेष्ठ देवता के रूप में उभरने वाले. प्रजापति (सृष्टि के निर्माता) थे।
⧫⧫राजसूय यज्ञ
➤इन अनुष्ठानिक यज्ञों से प्रजा में यह विश्वास पैदा हो जाता था कि उसके सम्राट को 'दिव्य शक्ति' मिल गयी है। यह यज्ञ राज्याभिषेक के समय सम्पन्न कराया जाता था।
अश्वमेघ यज्ञ
➤इस यज्ञ में राजा द्वारा छोड़ा गया घोड़ा जिन-जिन क्षेत्रों से बिना किसी प्रतिरोध के गुजरता था, उन सभी क्षेत्रों पर राजा का एकछत्र राज्य स्थापित हो जाता था।
बाजपेय यज्ञ
➤इस यज्ञ में राजा द्वारा रथों की दौड़ का आयोजन होता था। इस दौड़ में राजा के रथ को विजयी कराया जाता था। इन यज्ञिक अनुष्ठानों से प्रजा के हृदय पर राजा की अच्छी छवि बन जाती थी।
⧫ 'सत्यमेव जयते' मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है। इसी उपनिषद् में यज्ञ की तुलना टूटी नाव से की गयी है।
⧫ गायत्री मन्त्र सविता नामक सूर्य देवता को सम्बोधित है, जिसका सम्बन्ध ॠग्वेद से है।
⧫ रामायण एवं महाभारत नामक भारत के दो महाकाव्य हैं।
⧫ महाभारत को 'जयसंहिता' और 'सतसहस्री संहिता' के नाम से जाना जाता है। यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है।
⧫ रामायण की रचना बाल्मीकि तथा महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी।
⧫ ऋग्वेद की मूल लिपि ब्राह्मी थी ।
⧫ लोपामुद्रा, अगस्त्य ऋषि की पत्नी तथा वैदिक ऋचाओं की रचयिता थीं। उत्तर वैदिक काल में मूर्ति पूजा तथा गोत्र प्रथा का आरम्भ हुआ।
⧫ निष्क (सोने का सिक्का), शतमान (चाँदी का सिक्का), पाद, कृष्णल आदि माप की भिन्न-भिन्न इकाइयाँ थीं
⧫ यम और नचिकेता और उनके बीच तीन वर प्राप्त करने की कहानी कठोपनिषद् में वर्णित है।
⧫ श्वेताश्वतर उपनिषद् में पहली बार 'भक्ति' की अवधारणा मिलती है।
⧫ शतपथ ब्राह्मण में 'पुरुष मेघ' तथा महाजनी प्रथा का पहली बार जिक्र हुआ है तथा सूदखोर को कुसीदिन कहा गया है।
⧫ उत्तर वैदिक काल में आर्य संस्कृति के धुर क्षेत्र कुरु, पंचाल समझे जाते थे।
⧫ गाय को अघन्या (न मारने योग्य पशु) की श्रेणी में रखा गया है।
⧫ शिव की 'दक्षिणामूर्ति' प्रतिमा उन्हें शिक्षक के रूप में प्रदर्शित करती है।